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Monday, September 13, 2010

किसी का मजा, किसी कि जान

एक बार मैं पहाड़ों पर सफ़र करने निकला था. अब बिना गाड़ी के तो सफ़र कर नहीं सकता था, यो एक टेक्सी बुक करा ली. पहाड़ों पर कदम रखते ही मैं मंत्रमुग्ध हो गया,चारो तरफ फूलो से भरी वादियाँ और सुनहरी घाटियाँ थी. सूर्योदय कुछ ही देर पहले हुआ था, सूर्य झील के पानी पर अपनी किरणे बिखेर कर उसे दर्पण के समान चमकीला बना रहा था. मन कर रहा था प्रकृति के सभी मनमोहनीय दृश्यों को कैमरे के अपितु सिर्फ अपने नेत्रों में भर लूँ. रास्ते ख़राब थे जैसे गुलाब के पौधे में काटे, एक तरफ पहाड़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें थी तो दूसरी तरफ गहरी खाई . टेक्सी चालक टेक्सी सावधानी से तो चला रहा था परंतू जब भी कोई मोड़ आता था वह टेक्सी की रफ़्तार बढ़ा कर मोड़ता था. मैंने उससे  उसके इस शौक के विषय पर पूछा तो उसने कहा की जब तक गाड़ी मोड़ने पर पहिये से 'चर्रर्र' आवाज न आये तब तक गाड़ी मोड़ने पर मजा नहीं आता और इस प्रकार हर मोढ़ पर मेरी जान बेमज़ा हो जाती थी.    


मेरे पड़ोस में एक छोटी सी गौशाला है. अब आप ही सोचिये एक शहर के अन्दर इतनी जगह ही कहा होती है कि बड़ी गौशाला बनायीं जा सके, उस गौशाला में गाए व भैसे अत्यंत दुर्बल है, खैर यह तो उनके मालिको कि कृपा है, मैं भी रोज वही से दूध लाता हूँ, मेरे घर से चार घर बाद एक घर पर ग्वाला दूध ले कर आता है, हमारा घर तिराहे पर पड़ता है, जिस समय ग्वाला पड़ोसी का दूध ले कर आता है मेरा वह समय ऑफिस जाने का होता है, मैंने कई बार देखा कि ग्वाला अपने बालटा से लदी साइकिल लेकर सड़क के उस पर खड़ा रहता है और जब कोई बड़ी गाड़ी आती तो पूरा दम लगाकर साइकिल सहित दोड़ते हुए सड़क पार करता. कई बार यह तमाशा देखने के बाद मैंने उस दूध वाले से पूछा "भइयों पहले तुम इस तरह खड़े क्यों रहते हो तो?" उसने जवाब दिया "भैया जी, मैं सड़क के उस पार खड़ा होकर किसी बड़ी गाड़ी का इंतजार करता हूँ क्योंकि मेरे अचानक सड़क पार करने पर बड़ी गाड़ी जब झटके से ब्रेक लगाकर रोकी जाती है तो उसके पहियों की चरर्र की आवाज से मेरे दिल को बहुत मजा आता है". मैंने उसी समय अपनी छोटी सी गाड़ी को देखा और भगवान को धन्यवाद दिया..................


आज का उवाच-
अपने मजे के लिए किसी और की जान जोखिम में न डाले.

Thursday, September 2, 2010

Metro Over Pratiksha